भारत एक मृत्युंजय राष्ट्र: श्री हरीश चंद्र

शिमला, 25 अप्रैल 2025 — ठाकुर रामसिंह इतिहास शोध संस्थान नेरी (हमीरपुर), अखिल भारतीय साहित्य परिषद (शिमला) एवं हिमाचल अध्ययन केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में आज ऐतिहासिक गेयटी थियेटर, शिमला में ‘गौरवभूमि भारत’ विषय पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी के अध्यक्ष हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर डॉ. वीर सिंह रांगड़ा रहे। मुख्य अतिथि के रूप में साई इटरनल फाउंडेशन के चेयरमैन श्री राजकुमार वर्मा, विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. ओ. पी. शर्मा (पूर्व अध्यक्ष, डॉ. यशवंत सिंह परमार पीठ एवं टैगोर फेलो, भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला) तथा मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उत्तर क्षेत्र के बौद्धिक प्रमुख श्री हरीश चंद्र उपस्थित रहे।

गोष्ठी की शुरुआत जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में बलिदान हुए हिन्दू पर्यटकों को श्रद्धांजलि अर्पित कर की गई। तत्पश्चात मंचासीन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर विधिवत कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। कार्यक्रम में डॉ. अंकुश भारद्वाज ने कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो. वीर सिंह रांगड़ा का, प्रो. अरुण सिंह ने मुख्य अतिथि श्री राजकुमार वर्मा का, प्रो. पान सिंह ने विशिष्ट अतिथि प्रो. ओ. पी. शर्मा का तथा सह-समन्वयक डॉ. राजेश कुमार ने मुख्य वक्ता श्री हरीश चंद्र का सम्मान किया।

हिमाचल अध्ययन केंद्र के संयोजक अधिवक्ता देशराज ठाकुर ने कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए कहा कि अंग्रेजों द्वारा रचित पराजय पर भारतीय इतिहास को हमने पढ़ा और उसी से हमारी धारणाएं बनीं। अब समय आ गया है कि हम अपने गौरवशाली अतीत के उन अनछुए पहलुओं को उजागर करें। यही इस गोष्ठी का प्रमुख उद्देश्य है। मुख्य वक्ता श्री हरीश चंद्र ने भारत की गौरवशाली संस्कृति और चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विश्व की 49 प्राचीन सभ्यताओं में से केवल भारत, चीन और इंडोनेशिया की सभ्यताएं आज भी जीवित हैं। उन्होंने बताया कि इंडोनेशिया भले ही विश्व का सबसे बड़ा इस्लामिक देश हो, परंतु वहां की संस्कृति और प्रतीक हिन्दू परंपराओं से ओतप्रोत हैं। भारत की मृत्युंजयी आत्मा पर बोलते हुए उन्होंने कहा, “कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।” उन्होंने गुप्तकालीन भारत के स्वर्णिम युग का स्मरण करते हुए कहा कि भारत को ‘सोने की चिड़िया’ यूं ही नहीं कहा जाता था। उन्होंने उल्लेख किया कि भारत को लेकर मैक्समूलर और अन्य पश्चिमी विद्वानों ने भी सम्मानपूर्वक बातें कही हैं। भारत की पावन भूमि पर जन्म लेने की इच्छा देवताओं तक ने व्यक्त की है।

श्री हरीश चंद्र ने भारत के इतिहास में पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, दशगुरु परंपरा, वीर सावरकर, चाफेकर बंधु, सरदार भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त और राजगुरु जैसे महानायकों के बलिदान का उल्लेख करते हुए बताया कि भारत ने एक हजार वर्षों की गुलामी के बावजूद अपनी सांस्कृतिक आत्मा को खंडित नहीं होने दिया। उन्होंने पंच प्रण की दिशा में समाज में समरसता, परिवार की समृद्धि, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी के पालन और नागरिक कर्तव्यों के निर्वहन पर बल देने का आह्वान किया।

कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो. वीर सिंह रांगड़ा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में भारत के वैभवशाली अतीत और संत-महापुरुषों के अदम्य साहस का स्मरण करते हुए कहा कि महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी जैसे वीरों ने मुगलों से संघर्ष किया परंतु कभी भी उनकी दासता स्वीकार नहीं की। अंत में अखिल भारतीय साहित्य परिषद् शिमला के अध्यक्ष डॉ. पान सिंह ने सभी उपस्थित अतिथियों और प्रबुद्धजनों का आभार एवं धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कार्यक्रम का विधिवत समापन किया।

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