धौलाधार परिसर में “एक राष्ट्र – एक चुनाव” विषय पर कार्यशाला का आयोजन हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति, स्थानीय विधायक, व पत्रकारिता विशेषज्ञों की गरिमामयी उपस्थिति।

धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश — हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय (हिप्रविवि) के धौलाधार परिसर-1 के सेमिनार हॉल में “एक राष्ट्र – एक चुनाव” विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य भारत में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव करवाने की व्यवहारिकता, विधिक पहलुओं, और सामाजिक प्रभावों पर गहन चर्चा करना रहा।

कार्यक्रम में विशेष रूप से आमंत्रित हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जन संचार विभाग के प्रो. शशिकांत शर्मा ने अपने सारगर्भित संबोधन में मीडिया की भूमिका पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि “एक राष्ट्र – एक चुनाव” जैसे विषयों पर मीडिया की जिम्मेदारी कहीं अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि यह माध्यम आमजन तक सूचनाओं को पहुँचाने का सबसे प्रभावशाली माध्यम है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि यदि मीडिया सभी पक्षों की बातों को समान रूप से प्रस्तुत करे और जनता को पूरी जानकारी दे, तो नागरिक अधिक जागरूक और ज़िम्मेदार निर्णय लेने में सक्षम हो सकते हैं।

कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं संयोजक के रूप में जोगिंदरनगर से विधायक श्री जे. आर. कटवाल ने कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति दर्ज कराई और अपने राजनीतिक अनुभवों व व्यापक दृष्टिकोण के माध्यम से “एक राष्ट्र – एक चुनाव” विषय पर महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि यह विषय केवल राजनीतिक निर्णयों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देश की लोकतांत्रिक संरचना, प्रशासनिक क्षमता, और सामाजिक भागीदारी से सीधे जुड़ा हुआ है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस व्यवस्था को लागू करना केवल एक नीति निर्माण का कार्य नहीं है, बल्कि इसके लिए सभी पक्षों – सरकार, विपक्ष, निर्वाचन आयोग, राज्यों की विधानसभाएं, और सबसे बढ़कर आम जनता – के बीच गहन विमर्श और समन्वय की आवश्यकता है।

इस अवसर पर कार्यशाला में बतौर मुख्य वक्ता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सत प्रकाश बंसल जी ने विषय की संवेदनशीलता और समसामयिकता को उजागर करते हुए विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि “एक राष्ट्र – एक चुनाव” विचार न केवल प्रशासनिक व्यय को कम करेगा, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अधिक संगठित और प्रभावी बनाएगा। प्रो. बंसल ने अपने संबोधन में कहा कि बार-बार चुनावों से न केवल देश की आर्थिक और मानवीय संसाधनों पर दबाव बढ़ता है, बल्कि शिक्षण संस्थानों, प्रशासनिक कार्यों और विकास परियोजनाओं की गति भी प्रभावित होती है। उन्होंने तर्क दिया कि यदि पूरे देश में एक साथ चुनाव कराए जाएं, तो इससे सरकारी खर्चों में भारी कटौती हो सकती है, जिससे यह धन अन्य कल्याणकारी योजनाओं में लगाया जा सकता है। उन्होंने इस विचार के सामाजिक और राजनीतिक प्रभावों पर भी प्रकाश डाला। प्रो. बंसल ने बताया कि निरंतर आचार संहिता लागू होने से शासन व्यवस्था बाधित होती है। “एक राष्ट्र – एक चुनाव” की अवधारणा से कई चुनौतियों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने छात्रों और शिक्षकों से आग्रह किया कि वे इस विषय पर गंभीरता से मंथन करें, विभिन्न दृष्टिकोणों को समझें और अपने निष्कर्षों को अकादमिक और सार्वजनिक मंचों पर साझा करें। उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालयों को ऐसे ज्वलंत और समसामयिक मुद्दों पर संवाद के मंच तैयार करने चाहिए, जिससे युवाओं में राजनीतिक साक्षरता बढ़े और वे राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा सकें।

इस कार्यशाला में विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं, अध्यापकगण, शोधार्थी, और अन्य गणमान्य व्यक्ति बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

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