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पंच परिवर्तन’: कार्यक्रम नहीं, आंदोलन – राष्ट्रनिर्माण की दिशा में नई पहल

नई दिल्ली: भारत की सनातन संस्कृति और सभ्यता के मूल तत्वों को पुनर्स्थापित करने तथा विकसित भारत की नींव को सशक्त बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने ‘पंच परिवर्तन’ अभियान का आह्वान किया है। यह अभियान मात्र एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि समाज में अनुशासन, देशभक्ति और समरसता स्थापित करने का एक व्यापक आंदोलन है। इस पहल के अंतर्गत स्व का बोध, नागरिक कर्तव्य, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता और कुटुंब प्रबोधन जैसे पाँच प्रमुख आयामों पर कार्य किया जाएगा।

स्व का बोध: आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम

‘स्व का बोध’ का उद्देश्य आत्मनिर्भरता और स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देना है। जब प्रत्येक नागरिक स्वदेशी वस्तुओं को अपनाएगा, तो देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। स्वतंत्रता संग्राम में ‘स्वधर्म, स्वराज और स्वदेशी’ के जो मूल सिद्धांत अपनाए गए थे, वही आज आत्मनिर्भर भारत की नींव रख सकते हैं। राष्ट्र के प्रति जागरूकता और ‘स्व’ का भाव आत्म-संयम, त्याग और समाज के प्रति समर्पण को बल प्रदान करेगा।

नागरिक कर्तव्य: अनुशासन और सामाजिक सुधार की पहल

भारतीय संविधान में जहां नागरिकों को मूल अधिकार दिए गए हैं, वहीं मूल कर्तव्यों का भी उल्लेख किया गया है। कानून का पालन, सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान और सामाजिक समरसता बनाए रखना प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है। ‘पंच परिवर्तन’ के तहत युवाओं को विशेष रूप से नशाबंदी जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ सक्रिय भूमिका निभाने का आह्वान किया गया है।

पर्यावरण संरक्षण: प्रकृति के प्रति उत्तरदायित्व का निर्वहन

भारत की सनातन संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण का महत्वपूर्ण स्थान है। वायु और जल प्रदूषण की बढ़ती समस्या के समाधान के लिए ‘पंच परिवर्तन’ में जल संरक्षण, प्लास्टिक के उपयोग को समाप्त करने और वृक्षारोपण को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दिया गया है। आधुनिक उपभोक्तावादी प्रवृत्तियों को छोड़कर प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता विकसित करने की आवश्यकता है।

सामाजिक समरसता: जाति और धर्म के भेदभाव को मिटाने की पहल

भारत की संस्कृति में सह-अस्तित्व और भाईचारे की परंपरा रही है। ‘पंच परिवर्तन’ अभियान का उद्देश्य समाज में जाति और धर्म के नाम पर फैल रहे भेदभाव को समाप्त करना है। मंदिर, जलस्रोतों और श्मशान में भेदभाव को मिटाने, सभी वर्गों के साथ मिल-जुलकर त्योहार मनाने जैसी पहल से सामाजिक समरसता को मजबूती दी जाएगी।

कुटुंब प्रबोधन: संयुक्त परिवार की परंपरा को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता

संयुक्त परिवार प्रणाली भारतीय समाज का आधार रही है, जो भावनात्मक सहयोग, संस्कार और समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना में सहायक होती है। ‘पंच परिवर्तन’ के अंतर्गत परिवारों में संवाद बढ़ाने, सप्ताह में एक दिन पूजा एवं महापुरुषों के विचारों पर चर्चा करने, और बच्चों में संस्कार विकसित करने की पहल की जाएगी।

‘पंच परिवर्तन’ – भारत को विश्वगुरु बनाने की दिशा में एक कदम

‘पंच परिवर्तन’ महज चर्चा का विषय नहीं, बल्कि एक व्यापक आंदोलन है, जिसे व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयासों से साकार करना होगा। जब समाज में समरसता, पर्यावरण संरक्षण, नागरिक कर्तव्यों के प्रति जागरूकता, स्वदेशी उत्पादों का उपयोग और परिवारों में नैतिक मूल्यों का विकास होगा, तभी भारत एक सशक्त और विकसित राष्ट्र के रूप में उभरेगा। इस परिवर्तन से भारत को फिर से ‘विश्वगुरु’ की प्रतिष्ठा प्राप्त होगी।

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