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सामाजिक समरसता में संतों की भूमिका अहम: सामाजिक समरसता मंच

मानवता के कल्याण के लिए समाज में सामाजिक समरसता का होना अत्यंत आवश्यक

गायत्री मंदिर बिलासपुर में ठाकुर रामसिंह स्मृति न्यास एवं सामाजिक समरसता मंच हिमाचल प्रांत के तत्वावधान में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें “सामाजिक समरसता में संतों की भूमिका” विषय पर चर्चा की गयी।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्रीमान प्रमोद उत्तर क्षेत्र सामाजिक समरसता संयोजक रहे। जिन्होने सामाजिक समरसता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मानवता के कल्याण के लिए समरस समाज का होना बहुत आवश्यक है। भारतीय संस्कृति का आधार ही समरसता रहा है। संतो की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि प्राचीन काल से सारी प्रजा धर्मानुसार चलने वाली थी, शास्त्र सम्मत थी, क्यूंकि ऐसे नियम संतों द्वारा निश्चित किए गए थे। धर्म का पालन कैसे किया जायेगा यह भारत के ही संतों ने तय किया था। जिसका पालन करते हुए समाज आगे बढ़ा। संत ही भारतीय समाज को दिशा देते रहे हैं। भारतीय समाज में संतो की भूमिका पूजनीय है।

भारतीय समाज के संतो का उदहारण देते हुए उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत के महान संत रामानुजाचार्य का उदाहरण हम सबके सामने है। अलग-अलग कालखंड में भारत में अनेक संत हुए जिन्होंने मानवता को नई दिशा देने का काम किया। जिसमें माधवाचार्य, संत तुकाराम और संत रविदास जैसे नाम शामिल हैं। भारतीय संस्कृति के यह महान संत सदा धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो ऐसी विचारों से हम सबका मार्गदर्शन करते रहें हैं। उन्होंने कहा कि आज विश्व के कल्याण के लिए समाज में सामाजिक समरसता का होना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए संतों को आगे आकर इस कार्य के लिए प्रतिबद्ध होना होगा। तभी भारतीय समाज समरस हो पायेगा।

संगोष्ठी में स्वामी राजेंद्र गिरी महाराज ने भी समरसता विषय पर अपने विचार रखे। संगोष्ठी की अध्यक्षता समरसता मंच बिलासपुर के अध्यक्ष सोहन सिंह ठाकुर ने की। इस संगोष्ठी में संत महात्मा, कथावाचक, पुरोहित, रामलीला कमेटी के सदस्य, मंदिर कमेटी, भजन मंडली तथा अन्य प्रबुध्जन लोगों के साथ समरसता कायकर्ता उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में कुल संख्या 125 रही।

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